एक दिन का गणतंत्र व् आजादी
26 जनवरी या 15 अगस्त आते ही हमें देश की याद आती है। हर चैनल और अखबार गाँधी, बोस, नेहरु या भगत सिंह के बारे में लिख लिख कर हमें शायद याद दिलाते हैं की हम जो हैं अभी इन्ही की कुर्बानी की वजह से हैं। हमें हमारे गोर्वमय अतीत की याद दिलाता है। हमें याद दिलाता है की हम "अनेक में एक हैं"। खेर जैसे ही 27 जनवरी या 16 अगस्त आती है, देश भक्ति की जगह परिवार, समाज और पैसा ले लेता है।
ऐसा क्यूँ है की आज हमने अपनी आज़ादी को और सविधान को महत्व नहीं दिया हुआ है । हम में से बहुत ही कम शायद सविधान को अछी तरह से समझते हैं, हालाकि हम सबने इससे पड़ा है स्कूल में। आज भी हम सब अमीर और गरीब में भेदभाव करते हैं। आज भी हमारे घर में मज़दूर को रोटी और चाय अलग बर्तन में दी जाती है मगर 26 जनवरी को स्व: डॉक्टर अम्बेडकर साहब को याद ज़रूर करते हैं।
आज़ादी की लड़ाई में गांधीजी ने भेदभाव से लड़ने की शिक्षा दी मगर 1984 में और फिर 1992 में हमने उनके विचारों को दरकिनार कर दिया। शहीद भगत सिंह ने नौजवानों को निडर हो कर देश सेवा करने की शिक्षा दी परन्तु हम स्वयं सेवा और परिवार सेवा में ही उलझ कर रह गए। यह तो भला हो 70 साल के बुजुर्ग श्री अन्ना जी का की हम नौजवानों को अपनी ज़िमेदारी का एहसास हुआ और आगे बढ़ कर हमने गलत के खिलाफ आवाज़ उठायी है ।
आजादी की लड़ाई नारी शक्ति के बिना भी असंभव थी। हर एक आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। सुभाष चंदर बोस की सेना में रानी झांसी रेजिमेंट थी जिसने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला था। परन्तु आज हम उसी नारी जाती का अपमान करते हैं, तिरस्कार करते हैं। यहाँ भी सोच बदलने की ज़रुरत है।
अभी बहुत कार्य बाकी है। देश और समाज एक दुसरे का प्रतिबिम्ब ही है। अगर समाज सही होगा तो देश भी प्रगति करेगा और रोज़ हमें एक आज़ाद और गणतंत्रत होने की एहसास देगा।
वन्दे मातरम।।। जय हिन्द ।।।