बिहार चुनाव के परिणाम आ चुके हैं । व् उसके साथ ही विश्लेषण ।
अगर पूरे इस चुनाव को देखा जाए तो पहली बार यह लगा की विपक्ष पार्टियों की एकता कितनी महत्वपूर्ण होती है । २०१४ के लोक सभा चुनाव में बिखरा हुआ विपक्ष का फायदा भाजपा व् मोदी को हुआ । वोटों का विश्लेषण भी यही कुछ इशारा कर रहा था । परन्तु इसकी असली परीक्षा बिहार चुनावों के दौरान हुआ । इखट्टा हुआ विपक्ष ने एक बड़ा उलटफेर कर दिखाया जो शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा ।
अब देखने वाली बात यह होगी की क्या यह फार्मूला अब हर राज्य में दोहराया जाएगा ? बंगाल और तमिल नाडु में तो इसका कोई महत्व नहीं होगा क्यूंकि इन् दोनों राज्यों में भाजपा का सरकार बना लेना थोड़ा कठिन है । बहुत ही अछा प्रदशान रहा तो भाजपा इन् राज्यों में एक मज़बूत विपक्ष की तरह उदय हो सकती है । तो तृणमूल व् वामपंथी इखट्टे हों या अम्मा व् करूणानिधि हों ऐसा लगता नहीं है ।
अब इस फार्मूला का फिर से टेस्ट पंजाब व् उत्तर प्रदेश में होगा जोकि अभी एक से डेढ़ साल दूर हैं । इस दौरान भाजपा को भी समय मिल जाएगा की वह इसका कोई तोड़ निकाल सके ।
पर मेरे हिसाब से पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव में इखट्टा विपक्ष करना उतना आसान नहीं होगा । मेरे हिसाब से इन् चुनावों में भारतीय राजनीती के कई समीकरण बदलेंगे । पंजाब जहां पे भाजपा अकालियों के साथ मिल कर चल रहे हैं, शायद अब किनारे होक अपने आप में चुनाव लड़ने का फैसला ले । अगर ऐसा हुआ तो पंजाब की जनता के लिए विपक्ष में तीन पार्टियां होंगी - कांग्रेस , आम आदमी पार्टी व् भाजपा । किसी भी तरह का घटजोध चुनावों के बाद ही बनेगा जैसे कुछ हद्द तक दिल्ली में हुआ ।
उत्तर प्रदेश में भी सपा व् बसपा तभी इकहट्टी होंगी अगर २०१७ तक भाजपा केंद्र में मज़बूत लगी । अगर मोदी सरकार कमज़ोर दिखी तो उत्तर प्रदेश में भी जनता के लिए कई पार्टियां होंगी चुनने के लिए जो भाजपा के लिए शायद एक अच्छी खबर होगी । भाजपा यह भी प्रयास करेगी की बसपा य स्पा के साथ अंदरूनी घटजोर कर ले २०१७ से पहले ताकि वह बिहार जैसे परिणाम की तरफ न जाए ।
अंत: यही कहना चाहता हूँ की आने वाला समय भारतीय राजनीती में बेहद रोमांचक होने वाला है । तीसरा विपक्ष कांग्रेस के साथ या उसके बिना बनेगा की नहीं अथवा एक टूटा हुआ विपक्ष फिर से भाजपा व् मोदी का सूर्य भारतीय राजनीती के आसमान में उगेगा इसका पता २०१७ में ही चलेगा ।
जय भारत ।
अगर पूरे इस चुनाव को देखा जाए तो पहली बार यह लगा की विपक्ष पार्टियों की एकता कितनी महत्वपूर्ण होती है । २०१४ के लोक सभा चुनाव में बिखरा हुआ विपक्ष का फायदा भाजपा व् मोदी को हुआ । वोटों का विश्लेषण भी यही कुछ इशारा कर रहा था । परन्तु इसकी असली परीक्षा बिहार चुनावों के दौरान हुआ । इखट्टा हुआ विपक्ष ने एक बड़ा उलटफेर कर दिखाया जो शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा ।
अब देखने वाली बात यह होगी की क्या यह फार्मूला अब हर राज्य में दोहराया जाएगा ? बंगाल और तमिल नाडु में तो इसका कोई महत्व नहीं होगा क्यूंकि इन् दोनों राज्यों में भाजपा का सरकार बना लेना थोड़ा कठिन है । बहुत ही अछा प्रदशान रहा तो भाजपा इन् राज्यों में एक मज़बूत विपक्ष की तरह उदय हो सकती है । तो तृणमूल व् वामपंथी इखट्टे हों या अम्मा व् करूणानिधि हों ऐसा लगता नहीं है ।
अब इस फार्मूला का फिर से टेस्ट पंजाब व् उत्तर प्रदेश में होगा जोकि अभी एक से डेढ़ साल दूर हैं । इस दौरान भाजपा को भी समय मिल जाएगा की वह इसका कोई तोड़ निकाल सके ।
पर मेरे हिसाब से पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव में इखट्टा विपक्ष करना उतना आसान नहीं होगा । मेरे हिसाब से इन् चुनावों में भारतीय राजनीती के कई समीकरण बदलेंगे । पंजाब जहां पे भाजपा अकालियों के साथ मिल कर चल रहे हैं, शायद अब किनारे होक अपने आप में चुनाव लड़ने का फैसला ले । अगर ऐसा हुआ तो पंजाब की जनता के लिए विपक्ष में तीन पार्टियां होंगी - कांग्रेस , आम आदमी पार्टी व् भाजपा । किसी भी तरह का घटजोध चुनावों के बाद ही बनेगा जैसे कुछ हद्द तक दिल्ली में हुआ ।
उत्तर प्रदेश में भी सपा व् बसपा तभी इकहट्टी होंगी अगर २०१७ तक भाजपा केंद्र में मज़बूत लगी । अगर मोदी सरकार कमज़ोर दिखी तो उत्तर प्रदेश में भी जनता के लिए कई पार्टियां होंगी चुनने के लिए जो भाजपा के लिए शायद एक अच्छी खबर होगी । भाजपा यह भी प्रयास करेगी की बसपा य स्पा के साथ अंदरूनी घटजोर कर ले २०१७ से पहले ताकि वह बिहार जैसे परिणाम की तरफ न जाए ।
अंत: यही कहना चाहता हूँ की आने वाला समय भारतीय राजनीती में बेहद रोमांचक होने वाला है । तीसरा विपक्ष कांग्रेस के साथ या उसके बिना बनेगा की नहीं अथवा एक टूटा हुआ विपक्ष फिर से भाजपा व् मोदी का सूर्य भारतीय राजनीती के आसमान में उगेगा इसका पता २०१७ में ही चलेगा ।
जय भारत ।